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- Manushyata - मनुष्यता Class 10 Hindi Chapter - 2 -Question and Answer
Manushyata - मनुष्यता Class 10 Hindi Chapter - 2 -Question and Answer
Language : Odia
मनुष्यता
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो – तीन वाक्यों में दीजिए :
क. कविने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहां है ?
उ : कवि ने कहा है कि कोई व्यक्ति शरीर से मर जाने पर भी लोग यदि उसे उसके कर्मों के कारण याद करते हैं, तो ऐसे व्यक्ति की मृत्यु सुमृत्यु है | जन्म लेने पर मृत्यु तो अनिवार्य है | जो जीवन काल में स्वार्थ के लिए न जिकर परार्थ के लिए जीते हैं | वे अमर हो जाते हैं।
ख. यहाँ कोई अनाथ नहीं है, ऐसा कभी नहीं क्यों कहाँ है ?
उ : कवि ने स्पष्ट कर दिया है कि मुझे धन - संपत्ति, मित्रों, परिवारवालों की सहायता मिलेगी, वे मेरी रक्षा करेंगे, इसलिए मैं सनाथ हूँ, दूसरे लोग अनाथ है ऐसा मानना केवल मन का अहंकार है | जब हमारे साथ त्रिलोक के नाथ
ईश्वर है तो यहाँ कोई अनाथ नहीं है | वे गरीबों के बंधु है, परम दयालु है, सहायता के लिए विशाल बाहू प्रसारित कर देते हैं |
ग. “मनुष्य मात्र बंधु हैं” से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए |
उ : मनुष्य का विवेक उत्पन्न हो जाने से वह मनुष्य मात्र को अपना मित्र मानता है | उसके लिए कोई पराया नहीं होता | सब परमपिता के संताने हैं, सब के हृदय में परमात्मा का अंश आत्मा विद्यमान है | सब एक है |
2. निम्नलिखित पंक्तियों के भाव दो – तीन वाक्यों में स्पष्ट कीजिए :
क. “मनुष्य मात्र बंधु है, यही बड़ा विवेक है,
पुराण पुरुष स्वयंभू - पिता प्रसिद्ध एक है |
उ : मनुष्य का मनुष्य मात्र ही मित्र है | यह भाव मन में उत्पन्न हो जाना बड़ा विवेक है | ईश्वर परमात्मा है | सब के पिता है | वे एक और अभितीय है | हमारे हृदय में उनका अंश आत्मा विद्यमान है |
ख. रहो ना भूल कर कभी मदांध तुच्छ वित्त में |
सनाथ जान आपको करो न चित्त में ||
उ : कवि कहते हैं कि मनुष्य को अस्थिर तुच्छ धन संपत्ति को बहुत बड़ा मान कर भूल से भी कभी मदांध नहीं होना चाहिए | धन के मद से अंधा हो जाना मूर्खता है | मनुष्य को भी धन बल और मित्रों तथा परिवार के बाहु बल पर भरोसा करके अपने को सनाथ मानकर चित्त में गर्व न करना चाहिए |
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द / एक वाक्य में दीजिए :
क. कवि किससे न डरने की बात कर रहे हैं ?
उ : मृत्यु से
ख. कवि कैसी मृत्यु को प्राप्त करने का परामर्श दे रहे हैं ?
उ : सुमृत्यु को
ग. कवि मनुष्य की किस पशु – प्रवृति की बात कर रहे हैं ?
उ : केवल अपने स्वार्थ के ही जीना और काम करना मनुष्य की पशु – प्रवृति है , कवि इस प्रवृति की बात कर रहे हैं |
घ. मनुष्य क्या पाकर मदांध हो जाता है ?
उ : तुच्छ वित्त पाकर
ङ. अनाथ होने का घमंड क्यों नहीं करना चाहिए ?
उ : यहाँ त्रिलोकनाथ सभी के साथ है और कोई यहाँ अनाथ नहीं है इसलिए |
च. भाग्यहीन कौन है ?
उ : जो धीरज खो बैठता है |
छ. संसार में मनुष्य का बंधु कौन है ?
उ : संसार में मनुष्य का मनुष्य मात्र ही बंधु है |
ज. पुराण पुरुष हमारे क्या है ?
उ : पिता
झ. वेद किसका प्रमाण देते हैं ?
उ : हमारे अतः कारण में आत्मा विद्यमान होने से हम एक हैं |
ञ. कौन बंधु की व्यथा हरण कर सकता है ?
उ : बंधु ही |
भाषा – ज्ञान
1. उपयुक्त विभक्ति – चिह्नों से शून्य स्थान भरिए :
( से , में , के , का , को , के लिए )
क. फलानुसार कर्म के अवश्य वाह्य भेद हैं |
ख. वेद अंतरैक्य में प्रमाण है |
ग. वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे |
2. निम्नलिखित शब्दों के लिंग बताइए :
प्रवृति – स्त्रीलिंग
अंतरिक्ष – पुलिंग
मृत्यु – स्त्रीलिंग
विचार – पुलिंग
व्यथा – स्त्रीलिंग
अनर्थ – पुलिंग
3. निम्नलिखित शब्दों के प्रयोग से एक – एक वाक्य बनाइए :
विवेक : - तुम सर्वथा विवेक से काम लो |
प्रवृति : - केवल खा पीकर जीना ही पशु – प्रवृति है |
मर्त्य : - मर्त्य पर जो जन्म लेता है , वह अवश्य मरता है |
बंधु : - मनुष्य – मात्र ही हमारा बंधु है |
व्यथा : - अपने मन की व्यथा मन में रखो |